(जल, जंगल, ज़मीन जैसे बुनियादी संसाधनों की लूट के खिलाफ रची गयी कविता )
मुझे मुआयना करने को मिली सरकार
जिसका सुझाव था –
लाल रंग की ज़मीन पर कब्ज़ा करो
लाल फसलों पर ज़हरीले पतंगे बैठा दो
लाल फूलों को ज़ब्त करो और
मिल-मालिकों के गोदाम में सड़ा दो
आला अफसर हुक्म की तामील में जुट गए
और लाल पत्तियों, लाल पौधों
लाल जड़ों, लाल दरख्तों
लाल पुंकेसर, लाल कलियाँ
लाल भंवरे, लाल मधुमक्खियों पर
नाफरमानी के एवज में पाबंदी लगा दो
मैंने कहा –
सरकार ये अन्याय है
सरकारी अर्दलियों ने मुझे
बेतवा नदी के पानी का स्वाद और
उसका रंग मालूम करने को भेज दिया
मैंने देखा –
लाल रेत पर बाहुबलियों का ठेका था
लाल सीपियाँ, लाल मछलियाँ, लाल शंख,
लाल बालू पर सरकारी नुमाइंदे काबिज थे
मैंने कहा –
सरकार ये अन्याय है
सरकारी नुमाइंदों ने मुझे
जंगल की पहरेदारी पर भेज दिया
मैंने देखा –
लाल कन्दरा, लाल चन्दन, लाल परिंदे,
लाल वनमानुष, लाल प्रपात, लाल पर्वत,
लाल झाडियाँ, लाल लकडियों पर
सरकारी कारिंदे तैनात थे
मैंने कहा –
सरकार ये अन्याय है
सरकारी कारिंदों ने मुझे रेगिस्तान भेज दिया
मैंने देखा –
लाल कैक्टस, लाल फलियाँ, लाल ड्योढी, लाल बाड़ी,
लाल धूप, लाल चरवाहे, लाल युवतियाँ, लाल ऊंटों पर
सरकारी अर्दलियों के बूट थे
मैंने कहा-
सरकार ये अन्याय है
सरकारी अर्दलियों ने मुझे पिछडी सदी के गाँव भेज दिया
मैंने देखा-
लाल भेड़ें, लाल बकरियां, लाल मेमने, लाल बैल,
लाल सांड, लाल धोती, लाल लंगोटी, लाल पगडी,
लाल किसान, लाल मजीरा लाल भक्ति, लाल अजान
लाल धोबी, लाल पठान, पर सरकारी दलालों का कहर था
मैंने कहा-
सरकार ये अन्याय है
सरकारी दलालों ने मुझे खाड़ी भेज दिया
मैंने देखा –
लाल मजूर, लाल भाले, लाल चालें, लाल मशालें
लाल जमूरा, लाल मदारी, लाल महल की लाल दीवारें
लाल लाल दरिया, लाल किनारे, लाल गगन, लाल बहारें
लाल घोड़े, लाल पताकाएं लाल कतारें लाल धान, लाल गान
लाल चिरैया, लाल सलाम, लाल गवैया, लाल नचैया लाल कोड़े
लाल निशान - पर सरकारी सफ़ेद पोशाकों का डेरा था
मैंने कहा –
सरकार ये अन्याय है
सफेदपोश बाजीगरों ने मुझे
काले पानी की सजा का हकदार करार दिया
--अनिल पुष्कर कवीन्द्र