गुरुवार, सितंबर 24

राजा को समर्पित
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रात का राजा चलता जाए
सूरज को भी छलता जाए

हँसी के नश्तर रोज चलाये
सुख की कलियाँ कटती जाएँ

सुख के बस नगमे ही गाये
दुखों के काँटे बोता जाए


भूखों के हिस्से का खाये
चमक दमक तब शाह में आये


बैरागी खुद को बतलाये
रंग भरी महफिलें सजाये


खोद खोद मुर्दे उठवाए
सदियों पीछे दौड़ लगाये


बस उलटा ही चलता जाए
सूरज को भी छलता जाए

--संध्या नवोदिता

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