बुधवार, अगस्त 7

मंगलसिंह, तेरी आग की जीभ कहाँ है ?

इतिहास से इतर भी कुछ हो रहा है

कहीं कुछ और भी है जो बहुत भयानक है और हमारी आँख में उंगली डाल हमें वह दिखाना चाहता है जो हमसे हज़ारों मील दूर घट रहा है, या शायद हमसे एक मिली मीटर की दूरी पर भी किया जा रहा हो... बस हमारी आँख की ज़द में .. बस हमारी नज़र से दूर ..

यह एक कवि है Raja Puniyani जो कुछ आग सा कह रहा है-

मूल नेपाली में लिखी यह कविता खुद कवि ने अनूदित की है, कुछ शब्दों को मैंने प्रवाह में लाने के लिए छुआ है बस ...

मंगलसिंह, तेरी आग की जीभ कहाँ है ?

(गोरखालैंड के लिए शहीद होनेवाले मंगलसिंह राजपूत के नाम ...)

मंगलसिंह


तेरे जवान शरीर का
सौ साल बुड्ढा आग देख
अपने हक का पेशाब कर रहा है मंझला

मंगलसिंह, कौन सा है तेरी आग का देश?
मंगलसिंह, तेरी आग के चप्पल का ब्रांड क्या है?
मंगलसिंह, तेरी आग की जीभ कहां है

इस आग का नाम क्या है-
पूछ रहा है कार्पोरेटों से कुचला गया देश।

उपनिवेशवादी रामराज्य में
तेरी आग का दाम
सस्ता है उस तेल के दाम से जिसे तूने अपने शरीर में फेंका था।

तेरी आग के चेहरे में
लटक रहा है एक सपना का सरकारी हड्डी।
तेरी आग के मुंह से सट के खड़ा है
गुस्सैल आंधी का गीत।

मंगलसिंह, इस बार तुझे देख कर
बुद्ध एक कुँए का नक्शा आंक रहा है
हिटलर के हाथ से गिर चुका है तानाशाही कारतूस
गान्धी ने थोड़ी-सी उपर उठा दी है अपनी नैतिकता की धोती।

अब जा के मंगलसिंह
तूने एक धक्का दे दिया है
जो आज तक न दिया गया मानचित्र के पथरीले दरवाजे पर।

तेरी चीत्कार सुन कर इस बार
खुजला रही है तीस्ता
पुराने भूगोल का दाद
रह-रह कर खून बह रहा है जहाँ से

मंगलसिंह, तेरी आग की जीभ कहाँ है

संविधान की मकड़ी का मुता हुआ
तेरा इकतारा भुंड़ी में
बजाता रहता है तेरा जिद्दी आवाज -सुन रहा है तू

मंगलसिंह, तेरी आग के हाथों से
पकड़ रखी है तूने
इतिहास की पहेली की चालाक पूंछ

जिन पदचिह्नों का पीछा कर रहे हैं तेरे आग के पैर
वे मुक्ति के हैं या मृगतृष्णा के

मंगलसिंह, तेरी आग की जीभ कहाँ है

चाट दे तू आग की जीभ से
छली गर्भधारण के खबर खेल को

दिल्ली जाने वाली रेल का टीटीई मांग रहा है
तेरी आग का वोटर आईडी

मंगलसिंह, अब तो उतार दे तेरी आग का कवच
मंगलसिंह, तेरी आग की जीभ कहाँ है ?

3 टिप्‍पणियां:

  1. अपनी ब्लग में मेरी कविता को स्थान दे कर संध्याजी ने मुझे एक और भारी दायित्वबोध से लाद दिया है के मैं और अच्छा लिखने की संघर्ष को और तेज करुँ.... हृदय से आभार संध्या जी को यह हार्दिकता, प्रोत्साहन, व प्रेरणा के लिए .... और इस कविता के पाठक सभी को मेरा मित्रवत आभार

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  2. बेनामीअगस्त 11, 2013

    मंझे हुए कवि का उत्कृष्ट कविता...

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