शुक्रवार, दिसंबर 25

तुम्हारी तरह मैं प्यार करता हूँ


तुम्हारी तरह 
मैं प्यार करता हूँ
प्यार को,
ज़िंदगी को,
चीजों की मीठी खुशबुओं को,
जनवरी माह के आसमानी नज़ारे को 
प्यार करता हूँ

मेरा लहू उबलता है
मेरी आँखें हंसती हैं
कि मैं आंसुओं की कलियाँ जानता हूँ
मुझे भरोसा है कि दुनिया खूबसूरत है

और कविता रोटी की तरह
सबकी ज़रूरत है

और यह 
कि मेरी शिराएँ मुझमें ही ख़त्म नहीं होतीं
बल्कि ये लहू एक है
उन सबका 
जो लड़ रहे हैं ज़िंदगी के लिए,
प्यार के लिए,
सुन्दर नजारों और रोटी के लिए
और सबकी कविता के लिए.....


सत्ताईस बरस


सच में
गंभीर बात है
सत्ताईस बरस का होना
बेहद संजीदा बातों में
एक है -
दोस्तों के हमेशा-हमेशा के लिए  जाने का ख्याल
बचपन का गुमशुदा होना
किसी को ये शुबह होना
कि कालजयी है वह खुद .

 

      (रॉक डाल्टन की कविता का हिंदी अनुवाद : संध्या नवोदिता )

बुधवार, दिसंबर 23

वे कहते हैं ...

"एक पत्थर  है मार्क्सवाद और लेनिनवाद
बुर्जुआजी और साम्राज्यवाद का सर फोड़ने के लिए "

"नहीं
यह एक गुलेल है
जिस से यह पत्थर फेंका जाता है "

"नहीं, नहीं
यह एक विचार है
जो चलाता है उस हाथ को
जिस से तानी जाती है पत्थर फेंकने वाली गुलेल की कमानी" 

"मार्क्सवाद लेनिनवाद एक तलवार  है
साम्राज्यवाद के हाथों को काटने वाली "

"क्या ?
यह एक सिद्धांत है
जो साम्राज्यवाद के हाथों को नरमी से सहलाता है
उन्हें हथकड़ी  लगाने के मौके की तलाश में  "

क्या कर पाऊंगा मैं
अगर सारी ज़िंदगी मैं गुज़ार दूं मार्क्सवाद-लेनिनवाद को पढ़ते हुए

और जब बड़ा होऊं
तो यह भूल चुका होऊं
कि मेरी जेबों में भरे हैं पत्थर
और मेरी पिछली जेब में है एक गुलेल

और ऐन मुमकिन है
कि वो तलवार मेरी अंतड़ियों में धंसी  हो
और यह कि अब ये पांच मिनट
ब्यूटी  पार्लर  में भी सहारा नहीं दे पायेगा
किसी को !!

शनिवार, दिसंबर 19

काकोरी के शहीदों के लिए प्रेम के आंसू ........

सींची है खून से धरती , कटा देंगे यहीं गर्दन
मगर होने नहीं देंगे मनुष्य का मनुष्य से शोषण 

                                      मरते बिस्मिल रौशन लहरी अशफाक अत्याचार से 
                                          होंगे पैदा सैकड़ों उनके रुधिर की धार से
आज 19 दिसंबर है .... 1927 में  इसी दिन काकोरी केस के चार क्रन्तिकारी नौजवानों अशफाक उल्ला खां, राजिन्द्र लाहिड़ी , रामप्रसाद बिस्मिल और रौशन सिंह को फांसी पर लटकाया गया  .इलाहाबाद में आज जहां स्वरूपरानी अस्पताल है वहाँ पहले मलाका जेल थी .यहीं के फाँसीघर में रौशन सिंह को फांसी दी गयी थी . आज की तारीख में यहाँ रौशन सिंह की प्रतिमा उपेक्षित सी खड़ी है ...... शहीद के लिए कोई स्मारक तक नहीं बनाया गया .हाँ ... शहीदों को प्यार करने वाले वे लोग ज़रूर यहाँ अपने रौशन सिंह से मिलने आते हैं जिन का दिल आज भी देश के लिए धड़कता है .....अपने देश की बदहाली आज भी जिनके रोंगटे खड़े कर देती है .....
           क्या यहाँ शहीद रौशन सिंह का स्मारक बनना चाहिए  ? क्या इस अस्पताल का नाम शहीद रौशन सिंह अस्पताल नहीं होना चाहिए ?............जब तब उठते इन सवालों का जवाब देने वाला कोई नहीं है . हालांकि मामला सिर्फ एक मूर्ति या नाम का नहीं है ....असल बात तो शहीदों के सपने की है ......... क्या हम उन्हें पूरा कर पाए हैं ? इस सवाल का काँटा बहुत दर्द करता है..........
                जनवरी 1928 के " किरती " में काकोरी शहीदों पर एक सम्पादकीय नोट छपा था . संभवतः यह भगत सिंह के साथी भगवती चरण वोहरा का लिखा हो सकता है . इस मर्मस्पर्शी लेख का कुछ अंश आज के दिन को याद करते हुए-----
                 देखें यह लेख आज भी कितना मौजूं है....


                    जिस देश में देशभक्ति गुनाह समझा जाता हो ,जिस देश में आजादी की ख्वाहिश रखना बगावत समझी जाती हो,जहां लोक कल्याण की सज़ा मौत हो, उस देश की हालत  ख्याल में तो भले ही आ जाए  लेकिन बयान नहीं की जा सकती किसी देश की अधोगति इस से ज्यादा क्या हो सकती है .......
                 लोगों , भारत मां   के चार सुन्दर जवान फांसी चढ़ा दिए गए . वे नौकरशाही के डँसे ,दुश्मनी का शिकार हो गए . कौन बता सकता है की यदि आज वे जीवित रहते तो क्या क्या नेकी के काम करते , कौन-कौन से परोपकार करते ? कौन कह सकता है कि उनके रहने से संसार पहले से सुन्दर और रहने योग्य न दिखायी देता ? वे वीर थे , आजादी के आशिक थे ,उन्होंने देश और कौम की खातिर अपनी जान लुटा दी .
                    यदि भारत मां आज़ाद होती तो उनके बलिदानों का मोल पड़ता .यदि आज हिन्दुस्तान में कुछ जान होती तो यह बलिदान बेकार न होते . हाय ! आजादी के वीर चले गए .उन्हें किसी ने न पहचाना ,उन्हें किसी ने न कहा ,आप शूरवीर हो , आप बहादुर हो .वह जगह धन्य है जहां आप जन्मे-पले ! जहां आप खेले !वे राहें धन्य हैं जहां आप चले , जहां आप कूदे-भागे .
                  कहाँ वे और कहाँ हम  ? वे तो किसी और देश के निवासी थे .वे तो गरीबों की आह सुनकर मैदान में उतरे थे .वे तो हिन्दुस्तान से भूख-नंग को दूर आये थे . वे तो मजदूरों और किसानों का हाल पूछने आये थे . वे तो ऊँचे आदर्श के पुजारी थे . वे तो वह नज़ारे देखते थे जहां न भूख है , न नग्नता . जहां न अमीरी है न गरीबी . जहां न ज़ुल्म है ,न अन्याय . बस जहां प्रेम है ,एकता है ,जहां इन्साफ है ,आजादी है ,जहां सुन्दरता है . पर हम ? हम ?...... हाय रे  !
                    किसी का आदर्श कमाना ,आप खाना और बच्चों को पालना होता है  . किसी का आदर्श गरीबों ,दुखियों को लूटकर धन-दौलत इकट्ठी करना होता है ,किसी का आदर्श अपने सुन्दर शरीर को  तकलीफ से दूर रखने का होता है .
                     किसी का आदर्श कुछ होता है किसी का कुछ .लेकिन उनका आदर्श देश था .उनका आदर्श हिन्दुस्तान की आजादी था . उनका कोई स्वार्थ नहीं था .....
                     शहीद वीरों !हम कृतघ्न हैं , हम तुम्हारे किये को नहीं जानते . हम कायर हैं , हम सच-सच नहीं कह सकते . हमें आप माफ़ करो .हमें आप क्षमादान दो . आप धन्य थे .आपके बड़े जिगर थे कि अपने फांसी को टिच्च समझा .आपने मौत के समय मज़ाक किये ! पर हम ? हमें चमड़ी प्यारी है,हमें तो ज़रा सी तकलीफ ही मौत बनकर दिखने लगती है . आजादी ! आजादी का तो नाम सुनते ही हमें कंपकंपी छिड़ जाती है . हाँ ! गुलामी से हमें प्यार है , गुलामी की ठोकरों से हमें मज़ा आता है ! आपकी नस-नस से ,रग-रग से आजादी की पुकार गूंजती थी लेकिन हमारी रग-रग से,हमारी नस-नस से ,गुलामी की आवाज़ निकलती है .आपका और हमारा क्या मेल ? हमें आप क्षमा करो ,आप हमारे केवल यह प्रेम के अश्रु ही स्वीकार करो .
                    कहो ,धन्य हैं , काकोरी के शहीद........! 
        

 
                  

रविवार, दिसंबर 13

फिर भी इन्द्रधनुष देखेंगे


आती रुत के मन पर घाव जाती रुत के ज़ख्म हरे हैं 
कुछ खोया है कुछ पाया है नश्तर ये काफ़ी गहरे हैं 
फिर भी इन्द्रधनुष देखेंगे फिर भी हम पकड़ेंगे चाँद
आंसू वाली आँखों में उम्मीदों के भी रंग भरे हैं

गुरुवार, दिसंबर 3

गलती वहीं हुई थी

तुम्हारे अंधेरे मेरी ताक में हैं
और मेरे हिस्से के उजाले
तुम्हारी गिरफ्त में

हाँ , ग़लती वहीं हुई थी
जब मैंने कहा था
तुम मुझको चाँद लाके दो

और मेरे चाँद पर मालिकाना तुम्हारा हो गया .

एक दिन बेटियाँ

माँ
काश सब बेटियों की माएँ हों
बिल्कुल तुम सी

बेटी की बला ले लें अपने ऊपर
उसके खौफ़, उसकी पाबन्दियाँ, उसके पहरे
सब बदल जाएँ
घने प्रेम और विश्वास में

कहें बेटियों से
कंधे सीधे रखो
और सिर ऊँचा
नाज़ुक नहीं मज़बूत बनो

बेटियाँ पतंग नहीं होतीं न
बेटियाँ वर्तमान होती हैं
बेटियाँ भविष्य होती हैं
और बेटियों का भी होता है

वर्तमान और भविष्य

एक दिन बेटियाँ
हो जाती हैं माँ भी
तुम्हारी जैसी बेटियों की
तुम्हारी जैसी माँ.

इन दिनों

एक जंगल सा उग आया है
मेरे भीतर
इन दिनों

वहाँ रास्ते नहीं
पगडंडियाँ नहीं
कोई जाने पहचाने निशान नहीं

कोई जल्दी नहीं
बेखबर है यह दुनिया
समय की हलचलों से

चाँद उग आया है यहाँ
उल्टा होकर !

रिश्ता

मेरे पास चिड़िया है
चिड़िया के पास हैं पंख
पंखों के पास है परवाज़
और परवाज़ के पास है
पूरा आसमान


पंख, चिड़िया, परवाज़, आसमान और मैं
यह रिश्ता बहुत पुराना है.