यह कौन सा राष्ट्र है जहां दसरथ माझी रहता है !
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दसरथ माझी इस लोकतंत्र के मुँह पर तमाचा है !
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मैंने यह फिल्म रिलीज़ वाले दिन ही देखी. फिल्म देखकर सच मन में गुस्से का ज्वार सा उठता है. रात को ठीक से नींद नहीं आई और मैं सोचती रही जो लोग दसरथ को माउन्टेनमैन या पागल प्रेमी बना रहे हैं वे इस लोकतांत्रिक व्यवस्था के क्रूर हत्यारे चेहरे को एक रोमांटिसिज्म के नकाब में ढँक रहे हैं.
दसरथ मांझी की कहानी सब जानते हैं. जीतन राम मांझी के कारण आज सब यह भी जानते हैं कि मांझी बिहार की अतिदलित जाति है जिसके बहुतायत लोग आज भी चूहा खाकर जीने को विवश हैं. कि यह अतिदलित जाति बिहार के जैसे मध्ययुगीन सामंती राज्य व्यवस्था में सवर्ण सामंतों के भयानक दमन और उत्पीड़न का शिकार हुए हैं और आज भी हो रहे हैं.
दसरथ माझी का जीवन जैसा भी फिल्म ने दिखाया बेहद उद्वेलित करता है, कई बार दिल जलता है और भीगता है.
हालांकि फिल्म इससे बेहतर दिखा सकती थी. कमजोर स्क्रिप्ट, अत्यधिक नाटकीयता कई बार बहुत इरिटेट करती है. लगता नहीं केतन मेहता की फिल्म है. फिर नवाज़ का अभिनय साध लेता है. टूटता पहाड़ इसे अपने कन्धों पर रोक लेता है.
कई दृश्य तो बिलकुल नुक्कड़ नाटक की झलक हैं.
इसके बावजूद फिल्म ज़रूर देखी जानी चाहिए. तमाम कमियों, कमजोर पटकथा, बनावटी संवादों के बावजूद यह फिल्म एक एहसान है क्योंकि यह फिल्म ऐसे व्यक्ति को राष्ट्रीय पहचान दिलाती है जिसे दुनिया के सबसे बड़े और मजबूत लोकतंत्र ने सिर्फ उपेक्षित ही नहीं किया बल्कि उसे बहुत तकलीफ दी, बहुत पीड़ा दी. बहुत अपमान दिया.
मैं फिल्म देखती हूँ, दसरथ माझी पहाड़ को चुनौती दे रहा है... खून से सने कपड़े, उसकी चुनौती ..फिल्म का पहला सीन -- और डायलाग सुनते ही हॉल में दर्शकों का तेज ठहाका ! क्यों ? यह तो मार्मिक दृश्य है. दसरथ का दुःख क्रोध में रौद्र हो रहा है. पर दर्शक नवाज़ को देसी भाषा बोलते देख हंस रहा है.
ऐसे और भी संवेदन शील दृश्य हैं जो दर्शकों के ठहाके का निशाना बन गये- क्रूर मुखिया के सामने से दलित चप्पल पहन कर जा रहा है. मुखिया ने आदेश दिया इसकी वो हालत कर दो कि आगे से इसके पाँव चलने लायक भी न रहें, चप्पल तो दूर की बात है. दलित माफ़ी माँगता है, पाँव गिरता है पर मुस्टंडे उसे घसीटकर ले जाते हैं और उसके पाँव दाग देते हैं, भयावह चीत्कार गूंजता है पर दर्शक ठहाका लगाते हैं.
जब युवा दसरथ धनबाद की कोयलरी में काम करके कुछ पैसा कमाने के बाद थोडा बना ठना अपने गाँव लौटता है तो मुखिया क लोग उसे बुरी तरह कूट देते हैं, यहाँ भी दर्शकों का ठहाका सुनाई देता है. फाड़े हुए कपड़ों और नुचे हुए शरीर से भी दसरथ भी अपने घर में मौज लेता है. यहाँ पता नहीं कि असली दसरथ भी ऐसा ही कॉमिक चरित्र का था या नहीं. लेकिन ये फिल्म के कमजोर हिस्से बन गये जो वास्तव में बहुत मजबूत हो सकते थे.
यहाँ माओवादियों के आने और जनअदालत लगा कर मुखिया को फाँसी देने का दृश्य बहुत कमजोर बन गया, जो फिल्म का एक शानदार टर्निंग प्वाइंट हो सकता था. लेकिन शायद निर्देशक दिखाना ही यही चाहते थे जो उन्होंने दिखया.
दसरथ के पत्नी फगुनिया के साथ रोमांटिक दृश्य तो बाहुबली की याद दिलाते हैं. जब झरने की विशाल पृष्ठभूमि में फगुनिया एक जलपरी की तरह अवतरित होती है. क्या प्यार हर जगह ऐसे ही होता होगा. बाहुबली टाइप का. हर फिल्म में नायक-नायिका की कमोबेश एक जैसी छवि. आदिवासी, अति दलित समाज में भी सौन्दर्य के वही रूपक, वही बिम्ब.
अकाल का सीन। लग रहा है यह कोई जंगल की बात है। कोई सरकार नहीं है। कोई देश नहीं है। कोई राहत कोष महीन है। यह कौन सा राष्ट्र है जहां दशरथ माझी रहता है ! यह कौन सी सदी की बात है! तब आदमी चाँद पर तो न ही पहुंचा होगा जब दसरथ माझी आकाश की आग तले पहाड़ तोड़ रहा था। तब शायद पत्थर तोड़ने वाली मशीन भी भारत न आई होगी जब दसरथ पहाड़ तोड़ रहा था.
एक कुआं खोदना बहुत मुश्किल काम होता है, पथरीले इलाके में यह कुआं खोदना बेहद मुश्किल होता है, और पथरीले पहाड़ को तोड़ कर सड़क बनाना.... यह अविश्वसनीय काम है.
जब दसरथ पहाड़ तोड़ रहा था, जब अपनी ज़िन्दगी के बाईस साल उसने सड़क बनाने में लगा दिए, उस समय डायनामाईट से पहाड़ तोड़कर सड़कें बन सकती थीं और यह काम महज कुछ माह का था. पर दसरथ डायनामाईट के ज़माने में छेनी और हथौड़ी से सड़क बना रहा था. और हमारी व्यवस्था गौरवान्वित महसूस कर रही थी.
दसरथ की ज़िन्दगी से यह भी समझ में आता है कि पहाड़ से लड़ना आसान है पर पहाड़ जैसी व्यवस्था से लड़ना बहुत कठिन।
22 साल दशरथ ने पहाड़ तोडा, सबने देखा होगा। लोकतन्त्र के चरों खम्भो को पता था पर कोई खम्भा ज़रा भी डगमगाया नहीं आखिर खम्भा जो था।
तब जनप्रतिनिधि उस क्षेत्र के विधायक सांसद पंचायत क्या करते रहे।
दशरथ माझी कौन है इस देश के महानायक तो अमिताभ बच्चन हैं।
दशरथ माझी को अपने जीवन भर ज़िन्दगी जीने तक का सहारा नहीं मिलता पर उसके नाम पर बनी फ़िल्म करोड़ों कमाती है।
हम फ़िल्म में एडवेंचर पसन्द करते हैं। बेसिकली हम दशरथ को पसंद नहीं करते हम दशरथ द्वारा दिए माउंटेन मैन के मनोरंजन को पसन्द करते हैं। दसरथ जब तक था शायद ही हममे से किसी ने उसके जीवन के बारे में सोचा हो। और शायद ही किसी को यह जानने में दिलचस्पी हो कि दशरथ का परिवार इस समय भी बदहाली में जीने को मजबूर है.
यह कौन सा राष्ट्र है जहां दशरथ माझी रहता है !
नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी, राधिका आप्टे और तिग्मांशु धूलिया के बेहतरीन अभिनय के बारे में काफी कुछ कहा जा चुका है. फिल्म के पसंद किये जाने का कारण नवाज का लुक और अभिनय ही है.