क्या याकूब मेमन , टाइगर मेमन या दाउद भारत को इस्लामिक स्टेट बनाना चाहते हैं ? इसलिए इन्होने मुंबई बम काण्ड किया?
ऐसा तो है नहीं. ये तो हथियारों, रियल स्टेट और ड्रग्स जैसे गैर कानूनी धंधे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर करते हैं. ये तो कोई इस्लाम के नुमाइंदे नहीं हैं. ये सुपारी लेकर हत्याएं करते हैं. ये अपराधी हैं, जिनके अपराध बड़े राजनीतिज्ञों के गठजोड़ से ही फलते फूलते हैं.
तो मुंबई बम काण्ड से लाभ किसको था? इतनी बड़ी क्षमता वाले बम घर में तो बनते नहीं, आम आदमी की तो औकात नहीं कि दाउद से डील कर सके और अपने लिए एक बम या एके सैंतालीस खरीद ले. आम आदमी तो सफ़र में बड़ा चाकू तक लेकर चलने की हिम्मत नहीं चल सकता, तो 13 सीरियल ब्लास्ट के लिए इतनी बड़ी मात्रा में विस्फोटक अरेंज करना और उसे सही जगह प्लांट करना क्या बिना किसी बड़ी राजनीतिक शह के संभव है ??
यह बड़ा राजनीतिक हाथ किसका है?? याकूब मेमन तो मोहरा था, उसे फाँसी हो गई. लेकिन इससे मामला खत्म नहीं होता !!
अपराधी और नेता गठजोड़ का दूसरा बड़ा काउन्टरपार्ट वे ताकतवर नेता लोग कौन हैं जिनके लिए डी कम्पनी ने काम किया !
उनका नाम सामने आना तो दूर, उनके नामो की संभावनाओं तक पर चर्चा क्यों नदारद है? 1993 से अब तक 22 साल हो चुके हैं. उन ताकतवर नेताओं के नाम कहाँ हैं जिन्होंने दाउद से साठ-गाँठ करके मुंबई में 13 बम ब्लास्ट करवाए??
अगर इसमें पाकिस्तान का हाथ है, तो भी पूछना पडेगा कि पाकिस्तान के हाथ से हाथ मिलाने वाला हिन्दुस्तान का वह दूसरा हाथ किसका है?? भारत की सीमा में बाहर से इतना कुछ घुसा दिया जाए और भारत की खुफिया, पुलिस, प्रशासन, संतरी, मंत्री सब मासूम बने रहें !
यह संभव ही नहीं कि बिना बड़े स्तर के प्रभावी नेताओं के दखल के बिना यह सब कुछ हो पाए !
जनता को हिन्दू मुसलमान में बाँट कर राज करने की राजनीति पहली बार नहीं हुई है. यह अंग्रेजों का दिया अचूक नुस्खा है.
फिलहाल यह तो जानना बनता ही है कि मुंबई बम काण्ड आखिर किन ताकतवर नेताओं के दिमाग की उपज थी जिन्होंने दाउद और टाइगर जैसे अंतरराष्ट्रीय खूंखार अपराधियों को खरीद लिया ?
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